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ई-इनवॉइस क्या है | E invoice in hindi | 10 करोड़ तक ई-इनवॉइस अनिवार्य हो गया है

भारत सरकार द्वारा गुड्स और सर्विस टैक्स के अंतर्गत ई-इनवॉइस की एक नई व्यवस्था लाई जा रही है, जो कि डाटा को डिजिटल करने और जीएसटी को पूर्णरूप...

भारत सरकार द्वारा गुड्स और सर्विस टैक्स के अंतर्गत ई-इनवॉइस की एक नई व्यवस्था लाई जा रही है, जो कि डाटा को डिजिटल करने और जीएसटी को पूर्णरूप से ऑनलाइन करने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है, वर्तमान में नोटिफिकेशन संख्या 17/2022-सेंट्रल टैक्स के द्वारा दिनांक 01अक्टूबर 2022 से 10 करोड़ तक की टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए ई-इनवॉइस को अनिवार्य कर दिया गया है। इस आर्टिकल में हम यह जानेंगे कि-

➤ई-इनवॉइस क्या है?
➤ई-इनवॉइस की क्या आवश्यकता है ?
➤आईआरपी (इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल) क्या है?
➤आईआरएन (इनवॉइस रिफ़रेन्स नंबर) क्या है?
➤ई-इनवॉइस की व्यवस्था किस प्रकार काम करेगी ? 
➤ई-इनवॉइस से क्या लाभ होंगे ?
➤ई-इनवॉइस से संबंधित नोटिफिकेशन। 


ई-इनवॉइस क्या है? 


ई-इनवॉइस जीएसटी के अंतर्गत लाई जाने वाली एक व्यवस्था है, जिसमें इनवॉइस (बिल) को ऑनलाइन अपलोड किया जाएगा, और उस अपलोड की गई इनवॉइस को एक नंबर मिल जाएगा, इस नंबर का प्रयोग करते हुए उस इनवॉइस से संबंधित सभी जानकारी को ई वे बिल बनाने के लिए अथवा रिटर्न दाखिल करने आदि में प्रयोग किया जा सकेगा। 


ई-इनवॉइस के माध्यम से इनवॉइस के डाटा को डिजिटल किया जाएगा, जिससे जीएसटी से संबंधित व्यवस्थाओं को अधिक कुशल, पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाएगा। 


ई-इनवॉइस की क्या आवश्यकता है ?


जीएसटी अप्रत्यक्ष कर संग्रह करने की एक आधुनिक व्यवस्था है, जीएसटी को लागू करते समय भी इस बात का प्रमुखता से ध्यान रखा गया था कि, जो भी व्यवस्था बनाई जाए वह कुशल और पारदर्शी हो, जिससे कि करदाता के लिए इन प्रावधानों का पालन करना आसान हो, और व्यापार वाणिज्य में वृद्धि हो, जिससे देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत हो, और इसके साथ ही कर का संग्रहण भी आसान हो। 


वर्तमान में टैक्स सिस्टम को ऑनलाइन किया जा रहा है, ऐसे में व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण डाटा इनवॉइस अथवा बिल का डाटा होता है जो कि प्राथमिक है, टैक्स सिस्टम में सभी डाटा इसी पर आधारित होते हैं, यदि एक बार इनवॉइस के डाटा को डिजिटल रूप में पोर्टल पर अपलोड कर दिया जाएगा तो, इससे सभी ट्रांजैक्शन उस डाटा का प्रयोग कर पाएंगे और बार-बार एक ही डाटा को अलग-अलग पोर्टल पर अपलोड करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। 


भविष्य डिजिटल युग का है,कोई भी डाटा अथवा रिकार्ड अब डिजिटल फॉरमैट में ही रखा जा रहा है, लेकिन अप्रत्यक्ष कर में एक बड़ा डाटा आज भी अकाउंट बुक और खाताबुक अथवा बही के रूप में रखा जाता है, ई-इनवॉइस एकमात्र ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा भौतिक रूप से रखे जा रहे इन खाताबुक और बही को डिजिटल किया जा सकता है। 


आईआरपी (इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल) और आईआरएन (इनवॉइस रिफ़रेन्स नंबर) क्या है?


आईआरपी (इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल) जो 1अक्टूबर 2020 से कार्यरत है, ये बिलिंग / एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर हैं, जिसे एनआईसी (NIC) के द्वारा डेवलप किया गया है, कुछ प्राइवेट सॉफ्टवेयर कंपनियों के द्वारा भी डेवलप किए जाएंगे। सभी आईआरपी जीएसटीएन के नियंत्रण में कार्य करेंगे।पहला इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल https://einvoice1.gst.gov.in/ था।


आईआरपी (इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर है, इस इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल पर व्यापारी को रजिस्ट्रेशन करना होगा, इसके पश्चात अपने इनवॉइस के डाटा को अपलोड करना होगा।


डाटा अपलोड के पश्चात प्रत्येक इनवॉइस को एक विशेष नंबर जारी होगा, जो आईआरएन / IRN (इनवॉइस रिफ़रेन्स नंबर) होगा, यह आईआरएन यूनिक होगा, और इसका प्रयोग करते हुए व्यापारी, अपने इनवॉइस  के डाटा का रिटर्न आदि में प्रयोग कर पाएगा।  


टर्नओवर के आधार पर ई-इनवॉइस प्रावधानों के अधीन आने वाले डीलर के लिए आईआरपी पर रजिस्ट्रेशन और ई-इनवॉइस बनाना अनिवार्य हो गया है।  जैसे-जैसे e-invoice के लिए टर्नओवर कम होता जाएगा इनवॉइस की संख्या बढ़ती जाएगी, और एक आईआरपी द्वारा यह भर संभालना मुश्किल होगा।


ई-इनवॉइस भविष्य में यह सभी व्यापारियों के B2B अनिवार्य हो जाएगी और इसका अंतिम लक्ष्य सभी ट्रांजैक्शन के लिए इसे अनिवार्य करना है, इस संभावना को देखते हुए जीएसटी काउंसिल के समक्ष 4 अतिरिक्त आईआरपी  विश्वस्त कंपनियों द्वारा स्थापित कराने का प्रस्ताव है। 


यह निजी कंपनियां जीएसटीएन के द्वारा नियंत्रित की जाएंगी और यह व्यापारियों को इनवॉइस बनाने की मुफ्त सुविधा देंगी आईआरपी की सुविधा बढ़ने से इसे व्यापारी की B2C सप्लाई के लिए भी भविष्य में बढ़ाया जा सकता है। 

आईआरपी की सुविधा देने वाली निजी कंपनियां आईआरएन जनरेट करने की मूलभूत सुविधा तो मुफ्त में देंगे लेकिन किसी प्रकार की अतिरिक्त सुविधा यह भुगतान के आधार पर भी दे पायेंगी। 


अधिक आईआरपी होने पर यदि कोई आईआरपी सॉफ्टवेयर फेल भी हो जाता है तो, सभी ट्रांजैक्शन  रुक जाएंगे यह  जोखिम  समाप्त हो जाएगा। 


शीघ्रता से सभी व्यापारियों को ई-इनवॉइस के अंतर्गत लाया जा सकेगा, B2C ट्रांजैक्शन को भी इसमें शामिल किया जाएगा, जो कि व्यापारी के रिकॉर्ड  को पूरी तरह से डिजिटल करने में सहायक होगा।

 

अधिक आईआरपी प्रोवाइडर आने से उन्नत प्रतिस्पर्धा होगी, व्यापारी को उनमें से चयन करने की स्वतंत्रता होगी, जिससे व्यापारियों को अधिक गुणवत्तापूर्ण सेवाएं मिलेंगी। 


सभी आईआरपी जीएसटीएन के कंट्रोल में रहेंगी और जीएसटीएन यह सुनिश्चित करेगा कि कोई  भी इनवॉइस  डुप्लीकेट रजिस्टर ना हो सके। 


ई-इनवॉइस की व्यवस्था किस प्रकार काम करेगी ? 


जो व्यापारी इनवॉइस के प्रावधानों के अधीन आएंगे, उन्हें आईआरपी (इनवॉइस रिफरेंस पोर्टल) पर अपनी फर्म का रजिस्ट्रेशन कराना होगा,  रजिस्ट्रेशन के पश्चात व्यापारी द्वारा जो भी इनवॉइस B2B सप्लाई के लिए जारी की जाएगी, उस इनवॉइस की डिटेल को अपलोड करना होगा।


आईआरपी पर डिटेल अपलोड करने के बाद प्रत्येक इनवॉइस को एक विशेष नंबर जारी किया जाएगा, जो आईआरएन (इनवॉइस रिफ़रेन्स नंबर) होगा। 


यह आईआरएन इनवॉइस के डिजिटल डाटा का नंबर होगा, और इसके माध्यम से इस डेटा का प्रयोग ई वे बिल बनाने में अथवा रिटर्न दाखिल करने में किया जा सकेगा। 


ई-इनवॉइस से क्या लाभ होंगे ?   


वर्तमान समय में व्यापारी द्वारा माल को बेचते समय इनवॉइस जारी किया जाता है-


-इसके पश्चात ई-वे बिल पोर्टल पर उसी इनवॉइस के डाटा को अपलोड करके ई-वे बिल बनाया जाता है।

-इसके पश्चात व्यापारी द्वारा अपनी बिक्री को GSTR-1 के माध्यम से घोषित किया जाता है, जिसमें उसे पुनः इसी इनवाइट के डाटा को अपलोड करना होता है।

-इसके पश्चात जो व्यापारी अपना नियमित रिटर्न GSTR-3B दाखिल करता है, तो उसमें भी वह अपनी बिक्री को जोड़कर अपनी टैक्स लायबिलिटी निर्धारित करता है। 


इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि इनवॉइस के डाटा को व्यापारी जीएसटी के पोर्टल पर कई बार प्रयोग करता है, ई-इनवॉइस के माध्यम से व्यापारी इनवॉइस के डाटा को एक बार आईआरपी (इनवॉइस रजिस्ट्रेशन पोर्टल) पर अपलोड करके एक आईआरएन (इनवॉइस रिफ़रेन्स नंबर) प्राप्त कर लेगा। 


इस आईआरएन का प्रयोग करके व्यापारी की GSTR-1 (आउटवार्ड सप्लाई) में स्वतः अपलोड हो जाएगी और, जिस व्यापारी ने सामान खरीदा है, उसके GSTR 2A में भी अपलोड हो जाएगी जिससे व्यापारी को अपनी खरीद का क्रेडिट लेने में आसानी होगी। 


ई-इनवॉइस से भविष्य में इनवॉइस की हार्ड कॉपी की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, और पेपर की बचत होगी जो कि पर्यावरण के लिए भी अच्छा होगा। 


ई-इनवाइस से ई-वे बिल की आवश्यकता भी भविष्य में समाप्त हो जाएगी। 


टैक्स चोरी और कर अपवंचन में कमी आएगी। 


ई-इनवाइस से क्रेता और विक्रेता व्यापारी की रिटर्न भी स्वतः तैयार हो जाएगी। 


वित्तीय प्रणाली अधिक कार्यक्षम और दक्ष हो जाएगी, और व्यापारियों के लिए सुविधाजनक हो जाएगी भविष्य में इससे व्यापारी का समस्त लेखा डिजिटल हो जाएगा और ट्रांजैक्शन टाइम में काफी कमी होगी। 


ई-इनवॉइस से संबंधित नोटिफिकेशन-


जीएसटी काउंसिल की जून 2019 मे 35वी बैठक में ई-इनवॉइस रजिस्ट्रेशन सिस्टम स्थापित करने का निर्णय लिया गया था, जिसके लिए भारत सरकार द्वारा 10 आईआरपी (इनवॉइस रजिस्ट्रेशन पोर्टल) स्थापित करने के लिए नोटिफिकेशन (69 दिनांक 13-12-2019) जारी किया गया था।


इसमें एन.आईसी.सी. (NIC)  द्वारा स्थापित आईआरपी के अतिरिक्त अन्य आईपीआरपी भी स्थापित करने का विचार था। 


500 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए 01 अक्टूबर 2020 से ई-इनवॉइस को अनिवार्य किया गया था। इसमें किए गये संसोधन इस प्रकार हैं-


  • प्रथम चरण - 500 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए - नोटिफिकेशन संख्या 61/2020- दिनांक 01-10-2020 से लागू।
  • द्वितीय चरण - 100 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए - नोटिफिकेशन संख्या 88/2020- दिनांक 01-01-2021 से लागू।
  • तृतीय चरण - 50 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए - नोटिफिकेशन संख्या 05/2021- दिनांक 01-04-2021 से लागू।  
  • चतुर्थ चरण - 20 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए - नोटिफिकेशन संख्या 01/2022- दिनांक 01-04-2022 से लागू।
  • पंचम चरण - 10 करोड़ या अधिक की वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए - नोटिफिकेशन संख्या 17/2022- दिनांक 01-10-2022 से लागू।


वर्तमान स्थिति नोटिफिकेशन संख्या 017/2022-सेंट्रल टैक्स के द्वारा इसमें पुनः संसोधन किया गया, और दिनांक 01अक्टूबर 2022 से 10 करोड़ तक की टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए ई-इनवॉइस को अनिवार्य कर दिया गया है। 




➤ E invoice FAQ in Hindi - 


प्रश्न - क्या सभी इनवॉइस / बिल जीएसटी पोर्टल से जारी करने होंगे?

उत्तर - नहीं इनवॉइस उसी प्रकार जारी किए जाएंगे जैसे अब तक जारी होते रहे हैं, मात्र बिलिंग / एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर (आईआरपी) के द्वारा प्रत्येक इनवॉइस का इनवॉइस रिफरेंस नंबर (आईआरएन) बनाना होगा। 


प्रश्न - क्या इनवॉइस रिफरेंस नंबर (आईआरएन) बनाने में बहुत समय लगेगा?

उत्तर - इनवॉइस रिफरेंस नंबर (आईआरएन), इनवॉइस रजिस्ट्रेशन पोर्टल द्वारा जनरेट होगा एक इनवॉइस रिफरेंस नंबर (आईआरएन) 1 सेकंड के 100 वे भाग से भी कम समय में जनरेट हो जाएगा, साथ ही एक ही समय में एक से अधिक आईआरपी सक्रिय होंगे 


प्रश्न - क्या सभी ट्रांजैक्शन के लिए ई- इनवॉइस बनाना होगा?

उत्तर - वर्तमान में मात्र B2B सप्लाई और निर्यात के लिए ही इनवॉइस बनाना है, जैसे-जैसे व्यवस्था मजबूत होती जाएगी, इसे आगे विस्तार दिया जाएगा?

 

प्रश्न - क्या छोटे व्यापारियों को बिलिंग / एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर  खरीदना होगा, इससे उनके ऊपर  अतिरिक्त आर्थिक बोझ बोझ पड़ेगा?

उत्तर - डेढ़ करोड़ तक के टर्नओवर वाले व्यापारियों को आठ बिलिंग अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर (आईआरपी) जीएसटीएन के द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा। 


प्रश्न - क्या ई-इनवॉइस की प्रक्रिया से जटिलता बढ़ेगी?

उत्तर - नहीं बल्कि समय में काफी बचत होगी, क्योंकि ई-इनवॉइस की डिटेल से ई वे बिल भी बन जाएंगें, और रिटर्न भरने में लगने वाला समय भी बहुत कम हो जाएगा, इसके साथ ही टैक्स क्रेडिट का प्रवाह सुचारू रूप से होगा, जिससे जटिलताओं की कमी होगी। 


प्रश्न - क्या इनवॉइस रिफरेंस नंबर (आईआरएन) ही इनवॉइस नंबर होगा?

उत्तर - नहीं आईआरएन इनवॉइस नंबर नहीं है, यह इनवॉइस का रिफरेंस नंबर है जो पोर्टल के द्वारा जारी किया जाएगा,  इनवॉइस नंबर पहले की भांति ही जारी होता रहेगा। 


प्रश्न - क्या आईआरपी पर इनवॉइस अपलोड करने का फॉर्मेट प्रत्येक व्यापारी के लिए अलग होगा?

उत्तर - नहीं सभी व्यापारियों के लिए एक ही फॉर्मेट होगा, उसी फॉर्मेट में कुछ अनिवार्य कालम होंगे, और कुछ वैकल्पिक कालम होंगे। 


यह आर्टिकल आपको कैसा लगा, कृपया अपना सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य दें जिससे इसे और भी अधिक उपयोगी बनाया जा सके,  आर्टिकल पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।













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