जीएसटी भारत में जुलाई 2017 से लागू किया गया, जीएसटी की आवश्यकता क्यों आयी? इस आर्टिकल मे जीएसटी / माल एवं सेवा कर की अवधारणा को, ...
जीएसटी भारत में जुलाई 2017 से लागू किया गया, जीएसटी की आवश्यकता क्यों आयी? इस आर्टिकल मे जीएसटी / माल एवं सेवा कर की अवधारणा को, जीएसटी अधिनियम में आगत कर क्रेडिट (आई टी सी ) के प्रावधान को, उदाहरण सहित समझाने का प्रयास किया गया है।
साथ ही, भारत में माल और सेवा कर अपनाने के प्रमुख कारणों की विवेचना विस्तार से की गई है, यहाँ माल और सेवा कर की विशेषताओं के साथ चुनौतियों को भी समझाने का प्रयास किया गया है, कुछ सामान्य प्रश्न जो सभी के मन में हमेशा बने रहे हैं जैसे कि-
👉जीएसटी क्या है (जीएसटी का फुल फॉर्म क्या है)?
👉जीएसटी प्रत्यक्ष कर है अथवा अप्रत्यक्ष कर है?
👉जीएसटी की आवश्यकता /उद्देश्य क्या है?
👉माल और सेवा कर की अवधारणा क्या है?
👉जीएसटी के लाभ और हानि?
जीएसटी एक अप्रत्क्षय कर है, जीएसटी का पूरा नाम गुड्स एंड सर्विस टैक्स है, अर्थात माल एवं सेवा कर, इसे वस्तु एवं सेवा कर भी कहा जाता है। जीएसटी के द्वारा वस्तु एवं सेवा पर लगने वाले अप्रत्यक्ष कर को एकत्र किया जाता है। जीएसटी संपूर्ण विश्व में एक सर्वमान्य अप्रत्यक्ष कर संग्रह करने की व्यवस्था है, जो विश्व में सबसे अधिक प्रयोग की जाती है। जीएसटी को सबसे पहले फ्रांस में सन 1954 में लागू किया था।
मूल्य वर्धित कर प्रणाली
जीएसटी एक टैक्स है, और जिस प्रक्रिया द्वारा यह कर एकत्र किया जाता है, वह प्रक्रिया मूल्य वर्धित कर प्रणाली कहलाती है। अतः जीएसटी को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि मूल्य वर्धित कर प्रणाली किस प्रकार कार्य करती है।
मूल्य वर्धित कर प्रणाली, अप्रत्यक्ष कर को एकत्र करने की एक व्यवस्था है, जिसमे उतना ही कर चुकाया जाता है, जितना कि उस वस्तु के मूल्य में वृद्धि हुई है, अर्थात की यदि एक व्यक्ति ने किसी वस्तु को ₹10 में खरीदा, और ₹12 में बेचा, तो उसने उस वस्तु पर ₹2 की मूल्य वृद्धि की, इस प्रकार उस व्यक्ति का कर देने का उत्तर दायित्व सिर्फ ₹2 पर है, क्योंकि जब व्यक्ति ने उस वस्तु को ₹10 में खरीदी था, तो उसने वस्तु के मूल्य (₹10) पर कर दिया था, और जब वह वस्तु को ₹12 में बेचेगा तब ₹12 पर वह जो कर एकत्र करेगा, उसमें से जो कर उसने ₹10 पर दिया था, उसे कम कर दिया जाएगा, और शेष बचे ₹2 पर उसने जितना कर वसूला है वही उसका कर निर्धारण होगा।
इस संपूर्ण प्रक्रिया को एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है, जैसे कि, यदि किसी व्यक्ति ने कोई सामान ₹10 में खरीदा और उस पर 20% की दर से कर दिया, तो उसने उसे (10 रूपये वस्तु का मूल्य +2 रूपये कर) ₹12 में खरीदा, यदि वह व्यक्ति इस माल को अपना लाभ जोड़ते हुए ₹15 में बेंचता है, और उस पर 20% की दर से कर लगाता है, तो वह उसे ₹18 में बेचेगा, अर्थात उसने ₹15 पर ₹3 कर लिया है, जो उसे देना होगा, लेकिन उस वस्तु को खरीदते समय उसने ₹2 के कर का भुगतान किया था, जिसका उसे लाभ दिया जाएगा, और उसे मात्र ₹1 का कर देना होगा।
इस प्रकार उस व्यक्ति ने ₹10 के माल को ₹15 में बेचा अर्थात उसने ₹5 की मूल्य वृद्धि की तो उसे मात्र ₹5 पर 20% की दर से ₹1 का कर भुगतान करना होगा, यही मूल्य वर्धित कर प्रणाली है। और जीएसटी इसी कर प्रणाली पर आधारित है।
जीएसटी की आवश्यकता
जीएसटी की आवश्यकता को हम तभी बेहतर समझ पाएंगे, जब हम यह जाने कि जीएसटी से पूर्व जो व्यवस्था चल रही थी, वह क्या थी? और जीएसटी के माध्यम से उस व्यवस्था को किस प्रकार सुधारा गया?
👉जीएसटी परिषद (जीएसटी काउंसिल) क्या है | जीएसटी परिषद की स्थापना, गठन, कार्य और प्रक्रिया क्या है?
जीएसटी से पहले की व्यवस्था
जीएसटी से पहले वस्तु पर अथवा माल पर जो अप्रत्यक्ष कर वसूला जाता था, वह पहले वस्तु के निर्माण के समय लिया जाता था, जिसे एक्साइज ड्यूटी कहा जाता था, जो कि केंद्र सरकार के अधीन था।
उसके पश्चात उस पर मूल्य वर्धित कर (VAT/ Value Added Tax) लिया जाता था, जो कि राज्य सरकार के अधीन था। यह मूल्य वर्धित कर उसी प्रकार था, जैसा कि ऊपर बताया गया है, परंतु यह बहुत सीमित था। यह केवल एक ही राज्य में प्रभावी था, अर्थात यदि वस्तु एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री के लिए जाती थी तो, उस पर केंद्रीय बिक्री कर लगता था, न कि मूल्य वर्धित कर।
उस समय सभी राज्यों में जो मूल्य वर्धित कर प्रणाली कार्य कर रही थी, उसके अधिनियम/नियम सभी राज्यों मे एक समान नहीं थे, वे ऐक्ट केवल उस राज्य तक सीमित थे,अर्थात सभी राज्यों की मूल्य वर्धित कर के एक्ट में समानता नहीं थी।
इस प्रकार किसी वस्तु के निर्माण और बिक्री पर कई प्रकार के टैक्स लगाए जाते थे, जैसे कि एक्साइज ड्यूटी, मूल्य वर्धित कर, केंद्रीय बिक्री कर आदि। इसके अतिरिक्त भी कुछ कर थे जो विभिन्न राज्यों में और विभिन्न वस्तुओं पर अलग-अलग प्रकार से लगाए जाते थे, जैसे कि प्रवेश कर आदि।
भारत में सेवा क्षेत्र तेजी से बढ़ता हुआ सेक्टर है, 1990 के उदारीकरण के पश्चात इस सेक्टर में बहुत तेजी से वृद्धि की है, परंतु सेवा क्षेत्र में वसूली जाने वाली कर प्रणाली बहुत अच्छी नहीं थी। सेवा क्षेत्र में सर्विस टैक्स लगाया जाता था, जो कि केंद्र के अधीन था। इसके अतिरिक्त कुछ सेवाओं पर राज्य भी कर लेता था, जैसे कि मनोरंजन कर, जो कि थिएटर, पिक्चर हॉल, केबल टीवी ऑपरेटर आदि पर लगाए जाते थे।
इसके अलावा विभिन्न राज्यों में राज्य की सीमाओं पर चेक पोस्ट हुआ करती थी, जहां पर आने और जाने वाले वाहनों की जांच की जाती थी। इससे अनावश्यक समय लगता था, और कई बार दूसरे राज्य के नियमों को न जानने के कारण गलतियाँ होती थी,और पेनाल्टी भी देनी पड़ जाती थी। चेक पोस्टों पर विभिन्न प्रकार के दलाल भी सक्रिय रहते थे, जो कि अनावश्यक रूप से व्यापारी को परेशान करते थे, और वसूली करते थे। जिसकी शिकायतें लगातार अनेक राज्यों से प्राप्त होती रहती थी।
जीएसटी मे किए गये सकारात्मक परिवर्तन
- जीएसटी में चेक पोस्टों को खत्म कर दिया गया, और उसके स्थान पर अनलाइन ई-वे बिल को लाया गया। अब केवल ई-वे बिल बनाकर किसी भी राज्य का माल किसी भी अन्य राज्य को भेजा जा सकता है, और ई वे बिल बनाने की सारी व्यवस्था ऑनलाइन उपलब्ध है। कोई भी व्यक्ति घर पर बैठे-बैठे ई वे बिल बना सकता है, और माल को किसी भी राज्य में अथवा अपने ही राज्य के किसी दूसरे भाग में बिना किसी बाधा के भेज सकता है।
- इस प्रकार विभिन्न राज्यों में और केंद्र में अप्रत्यक्ष कर कई प्रकार के थे, जितने प्रकार के कर थे, उतने ही एक्ट थे, यदि व्यापारी से किसी प्रकार की भी चूक होती थी, तो उसे पेनाल्टी और अन्य समस्याओं से जूझना पड़ता था।
- जीएसटी में इन सभी करो को मिला दिया गया है। मूल्य वर्धित कर जो अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग थे, उन्हें पूरे भारत में एक ही एक्ट के अंतर्गत संचालित किया जाने लगा, यही जीएसटी एक्ट है, जीएसटी में वस्तु और सेवा दोनों को मिला दिया गया, अर्थात अब सेवा के लिए कोई अलग से सर्विस टैक्स नहीं है, बल्कि जीएसटी में ही व्यापारी वस्तु और सेवा दोनों पर टैक्स देता है।
- इससे एक राज्य का व्यापारी पूरे भारत से कहीं से भी माल ले सकता है और पूरे भारत में कहीं भी माल बेच सकता है। जीएसटी का मुख्य उद्देश्य ही है की टैक्स की जटिलता को कम कर दिया जाए, जिससे कि व्यापार को बढ़ाया जा सके और पूरे भारत को एक बाजार के रूप में विकसित किया जाए।
जीएसटी के लाभ-
- भारत के विभिन्न राज्यों में लागू किए गए मूल्य वर्धित कर (वैल्यू ऐडेड टैक्स) को एक ही एक्ट जीएसटी के अधीन कर दिया गया, जिससे सभी राज्यों के कर के नियमों में समानता आ गई।
- चेक पोस्ट की व्यवस्था समाप्त हो जाने से माल भेजने में लगने वाले समय में कमी हुई तथा राज्य की सीमाओं पर अनावश्यक लगने वाले जाम से मुक्ति मिली, इससे चेक पोस्टों पर होने वाले भ्रष्टाचार में कमी आई और माल परिवहन की सारी व्यवस्था ई-वे बिल के माध्यम से ऑनलाइन कर दी गई।
- जीएसटी से पहले सेवाओं पर सेवा कर लगाया जाता था, जिसे जीएसटी में मिला दिया गया।
- कुछ माल पर विभिन्न राज्यों में प्रवेश कर भी वसूला जाता था, यह भी जीएसटी में ही समाप्त कर दिया गया।
- कुछ राज्यों में मनोरंजन कर भी लगाया जाता था, इसे भी जीएसटी के अंतर्गत ही शामिल किया गया।
- होटलों पर पूर्व में कुछ राज्य सुख साधन कर अथवा पर्यटन कर लेते थे, इसे भी जीएसटी के अंतर्गत शामिल कर दिया गया।
- इसके अतिरिक्त जैसा कि पहले बताया गया है कि मूल्य वर्धित कर प्रणाली जो कि राज्यों में सक्रिय थी, उसमें पूर्व में दिए गए टैक्स के इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मात्र एक राज्य के भीतर और केवल वस्तुओं/माल पर मिलता था, लेकिन जीएसटी में सेवाओं का भी इनपुट टैक्स क्रेडिट खरीद पर दिए गए टैक्स का लाभ व्यापारी को मिलने लगा।
- क्योंकि वास्तव में वस्तु और सेवा को पूर्ण रूप से पृथक नहीं किया जा सकता, कई व्यापार में वस्तु और सेवा दोनों ही प्रक्रिया के अनिवार्य अंग होते हैं।
- जीएसटी की कर प्रणाली को पूरी तरह से ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है, और रिटर्न तथा अन्य जीएसटी संबंधी गतिविधियां कोई भी व्यक्ति अपने घर पर या कहीं भी जहां इंटरनेट की सुविधा है, संचालित कर सकता है।
- टैक्स के नियमों में सरलता और टैक्स अनुपालन की ऑनलाइन व्यवस्था से व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिलता है, और राज्यों के बीच आपसी व्यापार वाणिज्य में वृद्धि होती है, जिससे कि संपूर्ण भारत को एक बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- भारत के विभिन्न राज्यों में लागू किए गए मूल्य वर्धित कर (वैल्यू ऐडेड टैक्स) को एक ही एक्ट जीएसटी के अधीन कर दिया गया, जिससे सभी राज्यों के कर के नियमों में समानता आ गई।
- चेक पोस्ट की व्यवस्था समाप्त हो जाने से माल भेजने में लगने वाले समय में कमी हुई तथा राज्य की सीमाओं पर अनावश्यक लगने वाले जाम से मुक्ति मिली, इससे चेक पोस्टों पर होने वाले भ्रष्टाचार में कमी आई और माल परिवहन की सारी व्यवस्था ई-वे बिल के माध्यम से ऑनलाइन कर दी गई।
- जीएसटी से पहले सेवाओं पर सेवा कर लगाया जाता था, जिसे जीएसटी में मिला दिया गया।
- कुछ माल पर विभिन्न राज्यों में प्रवेश कर भी वसूला जाता था, यह भी जीएसटी में ही समाप्त कर दिया गया।
- कुछ राज्यों में मनोरंजन कर भी लगाया जाता था, इसे भी जीएसटी के अंतर्गत ही शामिल किया गया।
- होटलों पर पूर्व में कुछ राज्य सुख साधन कर अथवा पर्यटन कर लेते थे, इसे भी जीएसटी के अंतर्गत शामिल कर दिया गया।
- इसके अतिरिक्त जैसा कि पहले बताया गया है कि मूल्य वर्धित कर प्रणाली जो कि राज्यों में सक्रिय थी, उसमें पूर्व में दिए गए टैक्स के इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मात्र एक राज्य के भीतर और केवल वस्तुओं/माल पर मिलता था, लेकिन जीएसटी में सेवाओं का भी इनपुट टैक्स क्रेडिट खरीद पर दिए गए टैक्स का लाभ व्यापारी को मिलने लगा।
- क्योंकि वास्तव में वस्तु और सेवा को पूर्ण रूप से पृथक नहीं किया जा सकता, कई व्यापार में वस्तु और सेवा दोनों ही प्रक्रिया के अनिवार्य अंग होते हैं।
- जीएसटी की कर प्रणाली को पूरी तरह से ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है, और रिटर्न तथा अन्य जीएसटी संबंधी गतिविधियां कोई भी व्यक्ति अपने घर पर या कहीं भी जहां इंटरनेट की सुविधा है, संचालित कर सकता है।
- टैक्स के नियमों में सरलता और टैक्स अनुपालन की ऑनलाइन व्यवस्था से व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिलता है, और राज्यों के बीच आपसी व्यापार वाणिज्य में वृद्धि होती है, जिससे कि संपूर्ण भारत को एक बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है।
जीएसटी से हानि-
- जीएसटी की सारी व्यवस्था जीएसटी पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन होने के कारण जो व्यक्ति इंटरनेट और कंप्यूटर का प्रयोग करने में सक्षम नहीं है, वह इसके ऑनलाइन प्रक्रियाओं का पालन करने में असुविधा महसूस कर सकते हैं।
- जीएसटी में खरीद पर चुकाए गए कर का लाभ (इनपुट टैक्स क्रेडिट) पूरे भारत में कहीं भी लिया जा सकता है, इससे लोगों में जाली/फेक आई टी सी लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है, और कई ऐसे बड़े मामले भी जीएसटी विभाग द्वारा पकड़े गए हैं, जिसमें करोड़ों की जाली आईटीसी से संबंधित कर की चोरी की गई है।
- निश्चित रूप से व्यवस्था की सरलता से कुछ दुष्परिणाम भी सामने आते हैं लेकिन जिस प्रकार इसके नियमों में परिवर्तन करके उसमें लगातार सुधार किया जा रहा है, और सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है, जल्द ही इसमें होने वाली असुविधाओं को दूर करके, इसे एक व्यवस्थित और सरल कर प्रणाली के रूप में स्थापित किया जा सकेगा।
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